Wednesday, July 27, 2011

अब्राहम लिंकन का पत्र


                   अपने पुत्र के शिक्षक के नाम
               अब्राहम लिंकन का पत्र
हे शिक्षक
मैं जानता हूँ और मानता हूँ
कि न तो हर व्यक्ति सही होता है और न ही होता है सच्चा
किंतु तुम्हें सिखाना होगा कि कौन बुरा है और कौन अच्छा।

दुष्ट व्यक्तियों के साथ-साथ आदर्श प्रणेता भी होते हैं
स्वार्थी राजनीतिज्ञों के साथ-साथ समर्पित नेता भी होते हैं
दुश्मनों के साथ-साथ मित्र भी होते हैं
हर विरूपता के साथ सुंदर चित्र भी होते हैं।

समय भले ही लग जाए, पर
यदि सिखा सको तो उसे सिखाना
कि पाए हुए पाँच से अधिक मूल्यवान है-
स्वयं एक कमाना।

पाई हुई हार को कैसे झेले, उसे यह भी सिखाना
और साथ ही सिखाना, जीत की खुशियाँ मनाना।

यदि हो सके तो उसे ईर्ष्या या द्वेष से परे हटाना
और जीवन में छिपी मौन मुस्कान का पाठ पढ़ाना।

जितनी जल्दी हो सके उसे जानने देना
कि दूसरों को आतंकित करने वाला स्वयं कमजोर होता है,
वह भयभीत व चिंतित है
क्योंकि उसके मन में स्वयं चोर होता है।

उसे दिखा सको तो दिखाना-
किताबों में छिपा खजाना।
और उसे वक्त देना चिंता करने के लिए...
कि आकाश के परे उड़ते पक्षियों का आह्लाद,
सूर्य के प्रकाश में मधुमक्खियों का निनाद,
हरी-भरी पहाड़ियों से झांकते फूलों का संवाद,
कितना विलक्षण होता है- अविस्मरणीय...अगाध...

उसे यह भी सिखाना-
धोखे से सफलता पाने से असफल होना सम्माननीय है।
और अपने विचारों पर भरोसा रखना अधिक विश्वसनीय है।
चाहे अन्य सभी उनको गलत ठहराएँ
परंतु स्वयं पर अपनी आस्था बनी रहे यह विचारणीय है।

उसे यह भी सिखाना कि वह सदय के साथ सदय हो,
किंतु कठोर के साथ हो कठोर।
और लकीर का फकीर बनकर,
उस भीड़ के पीछे न भागे जो करती हो-
निरर्थक शोर।

उसे सिखाना
कि वह सबकी सुनते हुए अपने मन की भी सुन सके,
यदि सिखा सको तो सिखाना कि वह दुख में भी मुस्कुरा सके,
घनी वेदना से आहत हो, पर खुशी के गीत गा सके।

उसे यह भी सिखाना आँसू बहते हों तो उन्हें बहने दे,
इसमें कोई शर्म नहीं...कोई कुछ भी कहता हो...कहने दे।

उसे सिखाना-
वह सनकियों को कनखियों से हँसकर टाल सके
पर अत्यंत मृदुभाषी से बचने का ख्याल रखे।
वह अपने बाहुबल और बुद्धिबल का अधिकतम मोल पहचान पाए,
परंतु अपने हृदय व आत्मा की बोली न लगवाए।

वह भीड़ के शोर में भी अपने कान बंद कर सके
और स्वत की अंतरात्मा की सही आवाज सुन सके
सच के लिए लड़ सके और सच के लिए अड़ सके।

उसे सहानुभूति से समझाना
पर प्यार के अतिरेक से मत बहलाना।
क्योंकि तप-तप कर ही लोहा खरा बनता है,
ताप पाकर ही सोना निखरता है।

उसे साहस देना ताकि ताकि वक्त पड़ने पर अधीर बने
सहनशील बनाना ताकि वह वीर बने।

उसे सिखाना ताकि वह स्वयं पर असीम विश्वास करे,
ताकि समस्त मानव जाति पर भरोसा व आस धरे।

यह एक बड़ा-सा लंबा- चौड़ा अनुरोध है
पर तुम कर सकते हो, क्या इसका तुम्हें बोध है
मेरे और तुम्हारे...दोनों के साथ उसका रिश्ता है
सच मानो, मेरा बेटा एक प्यारा-सा नन्हा फरिश्ता है।